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दंत्य 'स' को दाँतों का सहारा
जितने सघन होते दाँत
उतना ही साफ उच्चरित होगा 'स'
दाँत छितरे हो तो सीटी बजाने लगेगा
पहले पहल
किसी सघन दाँतों वाले मुख से ही फूटा होगा 'स'
पर जरूरी नहीं
उसी ने दाखिला भी दिलवाया हो वर्णमाला में 'स' को
सबसे अधिक चबाने वाला
जरूरी नहीं, सबसे अधिक सोटने वाला भी हो
यह भी हो सकता है
असमय दंतविहीन हो गए
या आड़े-तिरछे दाँतों वाले ने ही दिया हो वर्णमाला को 'स'
अभाव ने ही दिया हो भाव
क्या पता किसी काट ली गई जुबान ने दिया हो 'ल'
अचूमे होठों ने दिया हो 'प'
प्यासे कंठ ने दिया हो 'क'
क्या पता अभवों के व्योम से ही बनी हों
सारी भाषाओं की वर्णमालाएँ
और एक दिन में ही नहीं बन गई होगी कोई भी वर्णमाला...
ध्वनि शुरू हो इस यात्रा में
वर्णमाला तक
आए होगें कितने पड़ाव
कितना समय लगा होगा
कितने लोग लगे होगें !
दिए होंगे कुछ शब्द जंगलों ने कुछ घाटियों ने
कुछ बहाव ने दिए होंगे कुछ बाँधों ने
कुछ भीड़ के एकांत ने दिए होंगे
कुछ धूप में खड़े पेड़ों की छाँव ने
कुछ आए होंगे अपने ही अंतरतम से
और कुछ सूखे कुओं की तलहटी से
कुछ पैदाइशी किलकारी ने दिए होंगे
कुछ मरणांतक पीड़ा ने
सुनी गई होंगी ये सारी ध्वनियाँ सारी आवाजें
सुनने वाला ही तो बोला करता है
पहली बार बोलने से पूर्व
जाने कितने दिनों तक
कितने लोगों को सुनता है एक बच्चा
जाने कितने लोग रहे होगें
कितने दिनों तक
शब्दों को सुनने ही से वंचित
न सुनने ने भी दिए होगें कितने-कितने शब्द
एक दिन में नहीं बन गए अक्षर
एक दिन में नहीं बन गई वर्णमाला
एक दिन में नहीं बन गई भाषा
एक दिन में नहीं बन गई पुस्तक
लेकिन
एक दिन में नष्ट किया जा सकता है कोई भी पुस्तकालय
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